स्वास्थ्य विभाग में खड़े-खड़े एक दर्जन से ज्यादा एंबुलेंस जर्जर और खराब हो गई हैं। जहां एक ओर हड़ताल के चलते लोगों को उपचार के लिए एंबुलेंस नहीं मिल रही। वहीं विभाग में एंबुलेंस को कबाड़ के समान की तरह इस्तेमाल हो रहा है। बारिश के मौसम में यहां गंदगी जमा रहती है, जिससे बीमारी फैलने का भी खतरा बना रहता है।
जिले में 38 एंबुलेंस चलती हैं। एंबुलेंस की संचालन और उनकी निगरानी के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से अलग से यूनिट तैयार की जाती है। जो 102, 108 और आपातकालिन सेवाओं पर आने वाली मदद पर एंबुलेंस पहुंचाते हैं। हालांकि एंबुलेंस का स्वास्थ्य क्षेत्र में अहम योगदान होता है।
गंभीर या घायल मरीज को समय से उपचार मिलने पर उसकी जान बच सकती है। इसलिए एंबुलेंस एक जीवनदायनी के रूप में काम करती है। दरअसल स्वास्थ्य विभाग में शासन की ओर से वाहनों का अधिग्रहण होता है। एंबुलेंस भी शासन की ओर से भेजी जाती हैं, लेकिन उनकी देख-रेख जिला स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी होती है। इसमें विभाग की ओर से लापरवाही बरती जा रही है।
स्वास्थ्य विभाग में पिछले तीन साल से एक दर्जन से ज्यादा एंबुलेंस खराब हो गई हैं, लेकिन ये ठीक नहीं हो सकी। कर्मचारियों द्वारा खराब वाहनों को स्वास्थ्य विभाग में खड़ा कर दिया जाता है, जो वहां सालों साल तक खड़ी रहती हैं। वहीं अब इन वाहनों की स्थिति केवल कबाड़ और जर्जर वाहनों की तरह हो गई हैं। जो वाहन मामूली मरम्मत के बाद ठीक हो सकते थे। वही अब विभाग में कबाड़ा बन कर रह गए हैं।
वहीं एंबुलेंस कर्मचारियों की ओर से पांच दिन तक हड़ताल चली थी, जिससे मरीजों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी थी। विभाग के पास वाहनों की उपलब्धता तो पर्याप्त है, लेकिन मरीजों तक उसकी सुविधा नहीं मिल पाती है।