राजस्थान उदयपुर में शाहपुरा (भीलवाड़ा) के तत्कालीन महाराजाधिराज द्वारा एक सौ सत्तर साल पहले स्कूल के लिए दान में दी गई भूमि क्या अतिक्रमण हो सकती है? इसका जबाव आम आदमी के लिए 'नहीं' होगा, लेकिन राजस्थान सरकार के लिए 'हां' में है। तभी तो भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा उपखंड के तहसील कार्यालय ने राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय कलिंजरी को भूमि खाली करने के आदेश दिए हैं। तहसील कार्यालय से जिस स्कूल की भूमि पर अतिक्रमण माना है, उसमें फिलहाल चार सौ बच्चे अध्ययनरत हैं। हालांकि कोरोना महामारी के चलते फिलहाल क्लासेज चालू नहीं हैं। स्कूल की भूमि को लेकर मिले प्रलेख में लिखा है कि शाहपुरा के तत्कालीन महाराजाधिराज जगत सिंह ने संवत 1908 में अस्तबल की भूमि कथा वाचक सीताराम अध्यापक को रियासत क्षेत्र के बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रदान की थी। तब से ही उस स्थान पर स्कूल संचालित है और आजादी के बाद इस जमीन का अधिकार शिक्षा विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया। हाल ही शाहपुरा के तत्कालीन तहसीलदार इन्द्रजीत सिंह ने स्कूल भवन को अतिक्रमण बताते हुए भूमि खाली करने का नोटिस दिया है। इस संबंध में मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी तथा स्कूल के प्राध्यापक को नोटिस भेजे गए हैं।
बताया गया कि जहां स्कूल संचालित है, वहां वेंकटेश्वर मंदिर भी मौजूद है। शाहपुरा के तत्कालीन महाराजाधिराज जगत सिंह ने संवत 1908 में मंदिर और स्कूल के लिए अलग-अलग भूमि प्रदान की थी। स्कूल भवन के जीर्ण-शीर्ण होने पर विभाग ने मंदिर के हिस्से में अध्यापन कार्य शुरू कर दिया, लेकिन पुजारी की आपत्ति के बाद उस परिसर को खाली कर दिया गया। बाद में मंदिर प्रशासन स्कूल की भूमि खाली कराने के लिए दबाव बनाने लगा। मंदिर प्रशासन ने स्कूल शाहपुरा एसडीएम डॉ. शिल्पा सिंह के समक्ष वाद पेश कर स्कूल भवन की भूमि को अपने अधिकार क्षेत्र का बताया। इस मामले में मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी द्वारिका प्रसाद ने स्कूल के लिए तत्कालीन राज परिवार की ओर से दान में दी गई भूमि के दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए समय मांगा, लेकिन उनके आग्रह को ठुकरा दिया गया। इस मामले में द्वारिका प्रसाद कहते हैं कि संपर्क पोर्टल पर उन्होंने दस्तावेजों सहित अपना पक्ष रखा है। जबकि तहसीलदार इंद्रजीत सिंह का कहना है कि उपखंड अधिकारी कार्यालय से मिले दिशानिर्देश के अनुसार, स्कूल भवन खाली करने के लिए नोटिस भेजे गए हैं।