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मन का ही कर्म गोविन्द राधे केवल इन्द्रियों का कर्म
  • 151125651 - SHASHANK KHANNA 0



*मन का ही कर्म, कर्म गोविन्द राधे।* *केवल इन्द्रियों का कर्म फल न दे।।* *दो प्रकार का कर्म होता है। एक कर्म होता है मन प्लस इन्द्रियां। एक कर्म होता है केवल मन। और एक कर्म और होता है केवल इन्द्रियां। तो भगवान या यों कहिए आध्यात्मिक क्षेत्र में मन के कर्म को ही कर्म माना जाता है। इन्द्रियों का कर्म मन के साथ हो तो ठीक है, वो भी कर्म है लेकिन अगर केवल इन्द्रियों का कर्म हो तो उसका फल नहीं मिलता। केवल इन्द्रियों का कर्म होगा कैसे? इंपॉसिबल! बिना मन के आए इन्द्रियां कर्म कर ही नहीं सकती। देखो ज्ञानी लोग मन को निर्विकल्प कर देते हैं। निष्क्रिय कर देते हैं तो उनकी कोई इन्द्रिय कर्म नहीं करती। न देख सकते हैं, न सुन सकते हैं, न सूंघ सकते हैं। कोई वर्क नहीं कर सकते। जैसे एक मृत व्यक्ति होता है, ऐसे ही समाधी वाला होता है। तो केवल इन्द्रिय का कर्म कैसे होगा? केवल इन्द्रिय का कर्म उसे कहते हैं कि जो कर्म कर रहा है उसमें मन का अटैचमेंट न हो। मन का अटैचमेंट और जगह हो और क्रिया इन्द्रियों से हो। आप लोग दिन रात करते हैं। मालूम है आप को। आप लोग बिना अटैचमेंट के दिन भर काम करते हैं। ऑफिस में, व्यापार में, सर्वत्र एक्टिंग करते हैं। एक्टिंग। उसको व्यवहार कहते हैं। मन का अटैचमेंट तो घर में है। मां में, बाप में, भाई में, बीबी में, पति में, बच्चों में, ये आठ दस में है। बाकी जगह मन का अटैचमेंट नहीं है। पैसा कमाने के लिए, व्यवहार चलाने के लिए दिन भर एक्टिंग करते हैं आप लोग झूठमूठ को, कहीं सॉरी कहते हैं, कहीं आई लव यू कहते हैं। सब झूठी बातें, शब्दों से। तो मन और जगह हो और इन्द्रियां और जगह का काम करें तो ये इन्द्रियों का कर्म कहलाता है। यही हम लोग भगवान के एरिया में करते हैं। 99.9% लोग। वो हिन्दू हो, मुस्लमान हो, ईसाई हो, सिख हो, सब यही करते हैं। नाटक, एक्टिंग, इन्द्रियों की भक्ति। पुस्तक का पाठ कर रहे हैं, जप कर रहे हैं, चारो धाम की मार्चिंग कर रहे हैं। पूजा कर रहे हैं, मन पर कोई असर नहीं। मन अपने संसार में पक्का अटैचड है क्योंकि बुद्धि का निश्चय है कि संसार में सुख है, हमको नहीं मिला। ठीक है। हमारी मां खराब है, हमारा बाप खराब है, हमारी बीबी खराब है। ये भ्रम है सबको। अनन्त मां बनाए, अनन्त बाप बनाए। मनुष्य को, कुते, बिल्ली, गधे सबको बाप, मां, बेटा बना चुके। अनगिनत, अनलिमिटेड। सब जगह धोखा खाया। ये ही भ्रम रहा ये हमारे परिवार वाले सब ऐसे ही हैं, और जगह अच्छे होंगे। और डिटैचमेंट नहीं हुआ, कहीं भी। मर गए!* *तो जहां अटैचमेंट है, मरने के बाद उसी की प्राप्ति होगी। जैसे बाप में अटैचमेंट है, मरने के बाद बाप गधा बना, हमको भी गधा बनना पड़ेगा। अरे! जीवनमुक्त परमहंस जड़ भरत को हिरण बनना पड़ा। एक हिरणी शेर के डर से भागी, उसके पेट में बच्चा था, नदी में कूद गई और बच्चा गिर गया पानी में, बहने लगा। भरत जी बैठे थे उसी नदी के तट पर, उनकी निगाह गई, दया आ गई, ये मर जाएगा पानी में जल्दी से जाकर उसको उठा लिया और मां तो जान बचाके भाग गई उस पार और भारत जी ने उसको पाल लिया। अब छोटा सा बच्चा हिरण का, उसको पालना साधारण बात नहीं है। बहुत ख्याल रखना पड़ता है। उसे खिलाना-पिलाना। पहले तो वह घास-वास खाएगा नहीं। उसको लाड-प्यार, नहलाना-धुलाना, ये सब इतना अधिक उनका अटैचमेंट हो गया कि हर समय हिरण के साथ, उसको चिपटाए रहें। उसको बगल में रखकर सोवें, उससे बात करें। जहां अटैचमेंट होता है वहां स्पर्श की इच्छा होती रहती है। वो बाप हो, मां हो, बीबी हो, बेटा हो, कहीं भी हो। अब मरने का समय आया जड़ भरत का, तो उन्होंने सब शिष्यों को बुलाया और कहा देखो बच्चो इस हिरण का बहुत ध्यान रखना, हम अब शरीर छोड़ने जा रहे हैं। और उसी हिरण का ध्यान करके मर गए। मरने के बाद हिरण बनना पड़ा। हिरण! लेकिन चूंकि जीवन-मुक्त परमहंस थे इसलिए पूर्व जन्म का स्मरण था कि मैने हिरण में अटैचमेंट किया, उसका ये परिणाम भोगा।* *तो मन का अटैचमेंट अगर संसार में है और भगवान सम्बन्धी उपासना कर रहे हैं तो उस उपासना का कोई फल नहीं मिलेगा। और यही कारण है बड़े बड़े पूजा-पाठी, अनाचारी, दुराचारी, भ्रष्टाचारी, पापचारी हैं, और दो-दो घंटे पूजा करते हैं। उनसे पूछो कि भगवान के दर्शन के लिए तुमने कितने आंसू बहाए? बाप मर गया आंसू बहाए, बेटा मर गया आंसू बहाए। अरे! लड़की विदा हुई पति के यहां, उधर ब्याह कर रहा है, लाखों रुपया खर्च कर रहा है और रो भी रहा है। लेकिन भगवान के मन्दिर में भगवान का स्मरण करके, उनके दर्शन की व्याकुलता में कभी आंसू नहीं बहाए। मर गए!* *अंतःकरण की शुद्धि करना है, हाथ की शुद्धि नहीं करना है पूजा करके। रसना की शुद्धि नहीं करना है पाठ करके। ये सिर रख दिया गुरुजी के चरण पर या मन्दिर में, ये खोपड़ी को नहीं शुद्ध करना है, ये तो साबुन से हो जाएगा। मन को करना है, मन को। कोई भी ये शिक्षा नहीं देता हमारे देश में। इतना जप कर लो, इतना पाठ कर लो, इतना पूजा कर लो। सुन्दरकाण्ड का पाठ करना। रात-रात भर जागरण हो रहा है। हो-हल्ला मच रहा है सब। शराब पी-पी के जागरण होता है। देवी जी का जागरण है। इनको नर्क मिलेगा कि गोलोक मिलेगा। तो इन्द्रियों की भक्ति से मन शुद्ध नहीं होगा। गंगा जी नहाने जा रहे हो? हां! भागे जा रहे हैं हरिद्वार, प्रयाग। क्या हुआ? नहा आए? चारो धाम हो आए? हां हां हो आए! मन में दो बात होनी चाहिए, एक तो संसार से डिटैचमेंट और भगवान में अटैचमेंट। संसार से वैराग्य, भगवान में राग-अनुराग। ये दो बातें हुई? वो तो नहीं हुई और बिगड़ गई। पहले तो हम पढ़ते थे बी.ए.,एम.ए. में, तो खाली इतना ही ध्यान था कि पास हों जाएं अच्छे डिविजन में, तो फिर नौकरी अच्छी मिल जाएगी और कोई फिक्र नहीं था। फिर एक मेम साहब भी बुला लिया। उनमें अटैचमेन्ट हो गया। अब एक, दो, चार बच्चे हुए, उनमें अटैचमेन्ट, फिर नाती-पोते। चले गए मरते हुए। यानि और नीचे चलते चले गए। अब हमारे पन्द्रह-बीस आदमी की जो, परिवार जिसको हम कहते हैं, एक का एक्सीडेंट हुआ। अब वो जो बूढ़ा है, क्या हुआ? अरे! ज्यादा चोट तो नहीं आई? तुम क्यों परेशान हो रहे हो, चोट तो उसको आई है, नाती को। अरे! मेरा नाती है जी। नाती है तो डॉक्टर के पास ले जाओ। हाय-हाय क्यों कर रहे हो? अटैचमेन्ट है। एक मर गया रोओ, दूसरा मर गया रोओ। अरे! अपना दुख तो है ही, शारीरिक, मानसिक। ये सारे परिवार के दुख में भी दुखी। आदमी जिंदा है, यही आश्चर्य है! और आशा करता है हमने इतना जप किया है, पाठ किया है, हमको तो गोलोक मिलेगा ही। अरे! मन का क्या हाल है?* *गंगा जी के बीच में खड़ा है, उससे पूछो, गंगा जी कौन हैं? मालूम है? ये जो बह रही हैं, ये हैं। ये गंगा जी हैं, ये तो पानी है जो गोमुख से निकला है। गंगा जी नाम कि पर्सनैलिटी किसे कहते हैं? वो तो हमको नहीं मालूम। तुम गंगा में खड़े होकर क्या सोच रहे हो? वो नाव जा रही है, वो नहा रहा है, वो तैर रहा है, वो नहा रही है। हमारा कपड़ा रखा है। पर्स में रुपया है, कहीं पंडा पार न कर दे। ये मन में सब है, संसार और डुबकी लगाए जा रहे हैं। एक डुबकी। अरे! यहां तक होता है कि पड़ोसी ने कहा अरे! श्रीवास्तव जी एक डुबकी मेरी भी लगा देना। अरे! डुबकी लगाया मेरी? हां! हां! लगाया था। गंगा जी से कह दिया कि ये डुबकी... तो ये इन्द्रियों की भक्ति हमने की इसलिए 0/100 मिला। कुछ लाभ नहीं, टाईम बर्बाद किया। इसलिए मन की भक्ति ही भक्ति है। ये रट लो। मन से भगवान का ध्यान करो। उनके दर्शन की व्याकुलता बढ़ाओ। बस! कोई नाम लो, कोई गुण गाओ, कोई लीला गाओ। कोई नियम नहीं, कायदा नहीं, सवेरे, दोपहर, शाम। जैसे संसारी मां-बाप, बेटे से प्यार करते हो, चौबीस घंटे, ऐसे ही भगवान से प्यार करना है। देवताओं की भक्ति में कायदे-कानून हैं, भगवान की भक्ति में नहीं हैं। बस प्यार मन का होना चाहिए, मन का। इन्द्रियों के प्यार को भगवान नोट नहीं करते। हजारों मर्डर करता है अर्जुन, हनुमान जी। भगवान नोट नहीं करते। अरे! इतने मर्डर किया है, आपने क्या लिखा? भगवान कहते हैं किसने कहा है कि मर्डर किया? अरे! हम लोगों ने देखा है, दुनियां वालों ने। सब अंधे हो तुम लोग, उसका मन तो मेरे पास था। जहां मन रहता है उसी का फल मिलता है। हम संसार में मन रखकर भगवान की भक्ति का नाटक करते हैं, मरने के बाद संसार का नर्क मिलेगा। संत-महात्मा संसार का काम करते हैं, बड़े-बड़े संत और मन भगवान की भक्ति करता है, वो गोलोक जाते हैं। इसलिए मन की भक्ति पर ही सदा ध्यान देना है। और भगवान कहां रहता है? ये सोचने की आवश्यकता नहीं, सबके हृदय में रहता है। कहीं मन्दिर जाने की जरूरत नहीं, अन्दर बैठा है। मान लो, मान लो! अनन्त जन्म बीत गए, नहीं माना। हम जो सोच रहे हैं, कोई नहीं जानता। वो अन्दर बैठा है, नोट कर रहा है। तूं क्या बक-बक करता है कि कोई नहीं जानता। तेरे ही बगल में बैठा है। वो आईडियाज नोट करता है, कर्म नहीं। ये बात जिस दिन हम मान लेंगे उस दिन आस्तिक कहलाएंगे। अब हम आस्तिक हो गये। लेकिन हर समय माने रहें, पांच मिनट को मान लिया, फिर भूल गए, ऐसा नहीं। अरे! देखो जिसके बारे में कोई प्रमाण नहीं, उसको बाप मानते हैं हम लोग। फिजिकल बाप। तुम्हारा बाप कौन है? ये है। तुम्हारे पास कोई प्रूफ है? मेरे पास क्या, मुझे याद थोड़े ही है कुछ और मैं तो बाद में पैदा हुआ, ये बाप तो पहले ही बन गये थे। अरे! तो कैसे तुम बाप मानते हो? मम्मी कह रही है, पड़ोसी कह रहे हैं, सब लोग कह रहे हैं तो हमने बाप मान लिया। ये सुनी-सुनी बात पर मान लिया। वेद कहता है तुम्हारे हृदय में तुम्हारा बाप जीवात्मा का परमात्मा बैठा है, क्यों नहीं मानते? उसमें तो डाउट है। उसमें डाउट है इसलिए पाप करते हैं, प्राइवेसी करते हैं। अगर हर समय ये फीलिंग ये, वो अन्दर बैठा नोट कर रहा है तो गड़बड़ बंद हो जाए। न दुनिया में गवर्नमेंट की जरूरत रहे, न कोई अपराध हो, और नर्क-वर्क कोई जाए न।* *केवल रिएलाईज करो। बोलना नहीं है, रिएलाईज करना है, महसूस करना है।* *ये पाठ प्रेक्टिकल रुप में एक दिन मानकर अभ्यास करना होगा। इस जन्म में न करोगे तो फिर चौरासी लाख में घूमोगे। कभी मानव देह मिलेगा और कोई संत मिलेगा, समझाएगा और फिर चूक जाओगे। यही तो हुआ है अनादिकाल से अब तक। इसलिए मन के कर्म को ही कर्म मानना है।* *-जगद्गुरूत्तम १००८ स्वामी श्री कृपालु महाप्रभु जी।* देखें भेलूपुर थाना आर आई संतोष विश्वकर्मा की रिपोर्ट 000540

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