कुत्ते को सदा से एक वफ़ादार जानवर माना गया है फिर भी उसको हाज़िर-नाजिर जानकर वफा की कसमें नहीं खाई जातीं। यह नाइंसाफी है। भले ही हिंदी फ़िल्मों का हट्टा-कट्टा नायक अक्सर दहाड़कर बोलता हो कि कुत्ते मैं तेरा ख़ून पी जाऊंगा फिर भी आज तक किसी कुत्ते को रक्तदान करते नहीं देखा गया। वैसे तो कुत्ता एक जानवर है, किंतु जब इसमें 'पन' जुड़ जाता है तो वह अवगुण बन जाता है। यह अवगुण कुछ मनुष्यों में भी पाया जाता है। हां, कुत्तों में मनुष्यता पाए जाने के अभी तक प्रमाण नहीं मिले हैं। कुत्ते और मनुष्य, दोनों सामाजिक प्राणी हैं। दोनों का साहचर्य प्राचीनकाल से है। युग त्रेता में जब धोबी था तो कुत्ता भी रहा होगा, क्योंकि जो घर और घाट में से कहीं का नहीं होता है, वह धोबी का ही कुत्ता होता है। द्वापर में भी धर्मराज युधिष्ठिर के साथ कुत्ते के स्वर्ग जाने का उल्लेख है।